आखिर क्‍यों घटने लगी है एम्‍स-दिल्‍ली की भीड़

आखिर क्‍यों घटने लगी है एम्‍स-दिल्‍ली की भीड़

सुमन कुमार

करीब तीन साल पहले दिल्‍ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्‍थान (एम्‍स) में अपनी मां का इलाज कराने बिहार से आए विजय कुमार जब इसी दिसंबर महीने में एक बार फ‍िर मां की जांच कराने के लिए एम्‍स-दिल्‍ली आए तो पिछले अनुभव के मुकाबले इस बार एक सुखद बदलाव ने उनका ध्‍यान खींचा। ये बदलाव था, भीड़ में आई प्रभावी कमी। उनकी मां के हृदय के वाल्‍व का ऑपरेशन तीन साल पहले हुआ था और तब उन्‍हें जिस भीड़ का सामना यहां करना पड़ा था वैसी स्थिति इस बार नहीं थी। एम्‍स की सालाना रिपोर्ट के आंकड़े इसकी गवाही देते हैं।

आंकड़े देखें। एम्‍स के दिल्‍ली स्‍थि‍ति सभी सेंटरों को मिलाकर साल 2015-16 में ओपीडी में करीब 35 लाख 33 हजार मरीजों ने अपना इलाज कराया था। अगले साल यानी 2016-17 में इस संख्‍या में भारी बढ़ोतरी देखने को मिली और ओपीडी वाले मरीजों की संख्‍या 41 लाख 40 हजार तक पहुंच गई। यानी मरीजों की संख्‍या में छह लाख से अधिक की वृद्धि हुई। ये करीब 17.18 फीसदी की बढ़ोतरी थी। मगर इसके अगले साल यानी 2017-18 में मरीजों की कुल संख्‍या तो बढ़ी और ये आंकड़ा 43 लाख 55 हजार तक पहुंच गया मगर ये वृद्धि दो लाख 15 हजार की यानी पिछले साल के मुकाबले वृद्धि सिर्फ 5.18 फीसदी की रही। वो भी तब जबकि इस दौरान एम्‍स में सुविधाओं में खासी बढ़ोतरी हुई। कुछ नई इमारतें बनकर तैयार हो गईं। ब‍िस्‍तरों की संख्‍या में 116 की बढ़ोतरी हो गई। डॉक्‍टरों की संख्‍या भी पहले से बढ़ गई। यानी सुविधाओं में खासी बढ़ोतरी के बावजूद मरीजों की संख्‍या उस अनुपात में नहीं बढ़ी।

तो ऐसा क्‍यों हुआ। क्‍या देश में अचानक लोगों का बीमार पड़ना कम हो गया है? ऐसा दावा तो कोई नहीं कर सकता मगर इसके बीज वर्तमान केंद्र सरकार द्वारा चिकित्‍सा क्षेत्र में किए जा रहे उपायों में तलाशे जा सकते हैं। एम्‍स ही नहीं दिल्‍ली के अन्‍य अस्‍पतालों में भी मरीजों की तादाद में बढ़ोतरी होने की रफ्तार कमोबेस थमने लगी है।

दरअसल आजादी के बाद से ही चिकित्‍सा क्षेत्र सरकारों के लिए उपेक्षित बच्‍चे की तरह रहा। देश की राजधानी में एक एम्‍स, कुछ राज्‍यों की राजधानियों में एक ठीक-ठाक मेडिकल कॉलेज और हर जिले में कमोबेस एक सरकारी अस्‍पताल बनाने के बाद सरकारों ने समझा कि उनका काम खत्‍म हो गया। हालांकि देश में आबादी के विस्‍फोट ने इन उपायों को चिड़‍िया का चुग्‍गा बना दिया। नतीजतन कॉरपोरेट अस्‍पतालों ने खुली लूट मचा दी। देश के दूरदराज के इलाकों के बारे में तो खैर किसी ने सोचा ही नहीं। डॉक्‍टरों की सारी विशेषज्ञता दिल्‍ली, मुंबई, चेन्‍नई, बेंगलुरु तक सिमट कर रह गई जिसके कारण मरीजों की भीड़ स्‍वाभाविक रूप से इन शहरों में लगने लगी। कभी सिर्फ रेफरल अस्‍पताल के रूप में जिस एम्‍स दिल्‍ली की कल्‍पना की गई थी उसके ओपीडी में नंबर लगाने के लिए लोगों को देर रात जगकर कतार में लगना पड़ता था।

कहा जा सकता है कि नरेंद्र मोदी सरकार के सामने इस दुरुह स्थिति को बदलने की गंभीर चुनौती थी मगर सरकार ने इस चुनौती से मुंह नहीं मोड़ा। तो सरकार ने ऐसा क्‍या किया कि स्थिति सिर्फ 3 साल के छोटे वक्‍त में ही बदलती दिखने लगी है?

सबसे बड़ा कदम तो देश के अलग-अलग हिस्‍सों में एम्‍स का जाल बिछाने का ही है। 2009 तक देश में सिर्फ एक एम्‍स था और मनमोहन सिंह की सरकार ने 2009 में चुनाव जीतने के बाद देश के अलग-अलग राज्‍यों में और 6 एम्‍स खोलने की घोषणा की। इनमें से कोई भी एम्‍स मनमोहन सिंह के कार्यकाल में पूरी तरह कार्यशील नहीं हो पाया था। हालांकि अब 8 एम्‍स अपने कैंपस में कम से कम ओपीडी में मरीजों का इलाज शुरू कर चुके हैं। इनमें भोपाल, पटना, जोधपुर, भुवनेश्‍वर, ऋषिकेश, रायपुर और रायबरेली शामिल हैं। इस साल के बजट को मिलाकर अबतक देश में 23 एम्‍स खोलने की घोषणा की जा चुकी है। यानी दिल्‍ली के एम्‍स पर से एक झटके से निर्भरता खत्‍म करने की पूरी तैयारी है। अगले कुछ वर्षों में जब ये सभी 23 एम्‍स पूरी तरह कार्य करने लगेंगे तो निश्चित रूप से राज्‍यों की भीड़ इलाज के लिए दिल्‍ली आने से परहेज करेगी।

मगर चिकित्‍सा क्षेत्र की पहल सिर्फ एम्‍स तक सीमित नहीं है। वास्‍तव में तो केंद्र सरकार का ज्‍यादा क्रांतिकारी कदम जिला अस्‍पतालों को मेडिकल कॉलेजों में बदलने का है। केंद्र सरकार ने ये फैसला किया है कि देश के कम से कम हर तीन लोकसभा क्षेत्र में एक सरकारी मेडिकल कॉलेज होगा। चूंकि जिला अस्‍पतालों के पास पहले से पर्याप्‍त मात्रा में जमीन है तो सरकारों को जमीन अधिग्रहण के झंझट से मुक्ति मिल जाएगी और इन अस्‍पतालों में आधारभूत ढांचा खड़ा करना ही बाकी रहेगा। पहले चरण में केंद्र सरकार ने देश के 58 जिला अस्‍पतालों को मेडिकल कॉलेज में बदलने का काम शुरू कर दिया है। इस योजना के परवान चढ़ जाने से देश का चिकित्‍सीय ढांचा ही बदल जाएगा। हर साल हजारों की संख्‍या में नए डॉक्‍टर तो देश को मिलेंगे ही, लोगों को घर के पास विशेषज्ञ चिकित्‍सा मिल जाएगी।

स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री की जिम्‍मेदारी पीएम नरेंद्र मोदी अपने करीबी नेता जगत प्रकाश नड्डा को दी है जो अपने काम में मनोयोग से जुटे हैं। शनिवार को चंडीगढ़ में नड्डा ने कहा कि स्वास्थ्य मंत्रालय देश भर में एम्स जैसे कई संस्थान खोल रहा है और मेडिकल कॉलेजों के नेटवर्क का विस्तार कर रहा है। नड्डा यहां स्नात्तकोत्तर चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान (पीजीआईएमईआर) के 35 वें दीक्षांत समारोह को संबोधित कर रहे थे। नड्डा इस संस्थान के अध्यक्ष भी हैं।

नड्डा ने केंद्र सरकार की पहलों का जिक्र करते हुए कहा, ‘हम देश के विभिन्न हिस्सों में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) जैसे संस्थान खोल रहे हैं। हम बड़े पैमाने पर जिला अस्पतालों का मेडिकल कॉलेजों के रूप में उन्नत कर अपने मेडिकल कॉलेजों के नेटवर्क का भी विस्तार कर रहे हैं।’ 

उन्होंने कहा कि आयुष्मान भारत जैसी सरकारी योजनाएं लाने से गरीबों के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं में पूर्ण बदलाव आएगा। प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (आयुष्मान भारत) को 31 अक्टूबर,2018 को पीजीआईएमईआर में लागू किया गया और उसके तहत करीब 177 मरीजों का इलाज किया गया।

दीक्षांत समारोह में पीजीआईएमईआर के 1886 विद्यार्थियों को विभिन्न क्षेत्रों में डिग्रियां प्रदान की गयी। केंद्रीय मंत्री ने उत्कृष्ट अनुसंधान के लिए 35 विद्यार्थियों को स्वर्ण पदक से सम्मानित किया। इसके अलावा 92 को रजत पदक और 95 को कांस्य पदक प्रदान किए गए।

 

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